वेद क्या है ?
वेद भारतीय संस्कृति के वे ग्रंथ हैं, जिनमें ज्योतिष, संगीत, गणित, विज्ञान, धर्म, औषधि, प्रकृति, खगोल शास्त्र आदि लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान का भण्डार भरा पड़ा है। वेद हमारी भारतीय संस्कृति की रीढ़ है। इनमें अनिष्ट से संबंधित उपाय तथा जो इच्छा हो उसके अनुसार उन्हें प्राप्त करने के उपाय संगृहीत हैं। लेकिन जिस प्रकार किसी भी कार्य में मेहनत लगती है, उसी प्रकार इन रत्नरूपी वेदों का श्रमपूर्वक अध्ययन करके ही इनमें संकलित ज्ञान को मनुष्य प्राप्त कर सकता है
सामान्य भाषा में वेद का अर्थ है-‘ज्ञान’। वस्तुतः ज्ञान वह प्रकाश है जो मनुष्य-मन के अज्ञानरूपी अंधकार को नष्ट कर देता है। वेदों को इतिहास का ऐसा स्रोत कहा गया है, जो पौराणिक ज्ञान-विज्ञान का अथाह भंडार है। ‘वेद’ शब्द संस्कृत के विद् शब्द से निर्मित है अर्थात् इस एकमात्र शब्द में ही सभी प्रकार का ज्ञान समाहित है। प्राचीन भारतीय ऋषि जिन्हें मंत्रदृष्टा कहा गया है, उन्होंने मंत्रों के गूढ़ रहस्यों को जान कर, समझ कर, मनन कर, उनकी अनुभूति कर उस ज्ञान को जिन ग्रंथों में संकलित कर संसार के समक्ष प्रस्तुत किया वे प्राचीन ग्रंथ ‘वेद’ कहलाए। यहाँ वेद का अर्थ उन्हीं प्राचीन ग्रंथों से है। इस जगत्, इस जीवन एवं परमपिता परमेश्वर; इन सभी का वास्तविक ज्ञान वेद है।
विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने शब्दों में कहा है कि वेद क्या है ? आइए पढ़ें किसने क्या कहा है-
(1) मनु के अनुसार, ‘‘सभी धर्म वेद पर आधारित हैं।’’
(2) स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, ‘‘वेद ईश्वरीय ज्ञान है।’’
(3) महर्षि दयानन्द के अनुसार, ‘‘समस्त ज्ञान विद्याओं का निचोड़ वेदों में निहित है।’’
(4) प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के अनुसार,
‘‘वेद-वेद के मंत्र-मंत्र में, मंत्र-मंत्र की पंक्ति-पंक्ति में,
पंक्ति-पंक्ति के शब्द-शब्द में, शब्द-शब्द के अक्षर स्वर में,
दिव्य ज्ञान-आलोक प्रदीपित, सत्यं शिवं सुन्दरं शोभित
कपिल, कणाद और जैमिनि की स्वानुभूति का अमर प्रकाशन
विशद-विवेचन, प्रत्यालोचन ब्रह्म, जगत्, माया का दर्शन।’’
अर्थात् वेद केवल ढकोसला मात्र नहीं है, इनमें वह पौराणिक ज्ञान समाहित है जिनके अध्ययन से धीरे-धीरे विकास हुआ और आज के आधुनिक युग की कई वस्तुओं का ज्ञान प्राचीन भारतीय ऋषियों ने पहले ही मनन कर प्राप्त कर लिया था। वेद परम शक्तिमान ईश्वर की वाणी है। अर्थात् वेद ईश्वरीय ज्ञान है। वेद श्रुति भी कहलाते हैं क्योंकि श्रुति का तात्पर्य है-सुनना। इसका अर्थ है कि प्राचीन भारतीय ऋषियों ने मनन एवं ध्यान कर अपनी तपस्या के बल पर ईश्वर के ज्ञान को ग्रहण किया, उसे आत्मसात् किया। जब उनके शिष्य उनसे शिक्षा ग्रहण करते तो वे उसी ज्ञान को उन्हें बाँटते।
यह ईश्वररीय ज्ञान मंत्रों के रूप में ऋषियों के साथ सभी को स्मरण होता गया, उन्हें कण्ठस्थ हो गया और धीरे-धीरे उन सभी से एक-दूसरे के पास पहुँचा। क्योंकि प्राचीन काल में आज की तरह स्कूल, कॉलेज नहीं थे। अपितु शिष्य, ऋषियों के आश्रय में जाकर शिक्षा ग्रहण करते थे जो गुरु-शिष्य परम्परा कहलाती थी और ऋषि मंत्रों का उच्चारण कर शिष्यों को समझाते थे। कहने का तात्पर्य यह है कि ऋषियों ने जो ईश्वरीय ज्ञान सुना वह वेद है, श्रुति है। इसलिए वेदों को श्रुति भी कहा गया।
वेद ज्ञान का अनन्त भण्डार है। ये ईश्वरीय ज्ञान है। ये कोई ऐतिहासिक पुस्तकें नहीं है कि कोई घटना घटी और पुस्तकवद्ध हो गई। अतः ईश्वर की अलौकिक वाणी जो ज्ञानरूप में वेदों में निहित है, उसे समझने के लिए वेद ही वे अलौकिक नेत्र हैं जिनकी सहायता से मनुष्य ईश्वर के अलौकिक ज्ञान को समझ सकता है। वेद ही वे ज्ञान ग्रंथ हैं जिनके समकक्ष विश्व का कोई भी ग्रंथ नहीं है।
अतः वेद ईश्वरीय ज्ञान है और उनका उद्भव भी ईश्वर द्वारा ही हुआ है।
वेदों की उत्पत्ति का पौराणिक आधार
ब्रह्माजी ने सृष्टि रचना के समय देवों और मनुष्यों के साथ-साथ कुछ असुरों की भी रचना कर दी। इन असुरों में देवों के विपरीत आसुरी गुणों का समावेश था, इस कारण ये स्वभाव से अत्यंत क्रूर, अत्याचारी और अधर्मी हो गए। ब्रह्माजी ने देवगण के लिए स्वर्ग और मनुष्यों के लिए पृथ्वी की रचना की। लेकिन जब ब्रह्माजी को असुरों की आसुरी मानसिकता का ज्ञान हुआ तो उन्होंने असुरों को पाताल में निवास करने के लिए भेज दिया।
असुर स्वच्छंद आचरण करते थे। शीघ्र ही उन्होंने अपनी तपस्या से भगवान् शिव को प्रसन्न कर वरदान में अनेक दिव्य शक्तियाँ प्राप्त कर लीं और पृथ्वी पर आकर ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करने लगे। धीरे-धीरे ये अत्याचार बढ़ते गए। इससे असुरों की आसुरी शक्तियों में भी वृद्धि होती गई। देवों की शक्ति का आधार भक्ति, सात्त्विकता और धर्म था, लेकिन स्वर्ग के भोग-विलास में डूबकर वे इसे भूल गए, इस कारण उनकी शक्ति क्षीण होती गई।
Sunday, May 9, 2010
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