Sunday, May 9, 2010

पुण्यदायी पुरूषोत्तम मास

पुण्यदायी पुरूषोत्तम मास

भारतीय पंचांग (खगोलीय गणना) के अनुसार प्रत्येक तीसरे वर्ष एक अधिक मास की उत्पत्ति होती है। वास्तव में यह सौर और चांद्र मास को एक समान लाने की गणितीय प्रक्रिया है। शास्त्रों के अनुसार पुरूषोत्तम मास में किए गए जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है।

इस मास में भूमि शयन और एक समय भोजन करने से अनंत फल प्राप्त होता है। सूर्य की बारह संक्रांति होती है और इस आधार पर हमारे चांद्र आधारित वर्ष में 12 माह होते हैं। हर तीन वर्ष के अंतराल पर अधिक मास या मलमास आता है। शास्त्रानुसार-
यस्मिन चांद्रे न संक्रान्ति: सो अधिमासो निगह्यते
तत्र मंगल कार्यानि नैव कुर्यात कदाचन्।
यस्मिन मासे द्वि संक्रान्ति क्षय: मास: स कथ्यते
तस्मिन शुभाणि कार्याणि यत्नत: परिवर्जयेत।।

क्या है अघिकमास
जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास होता है। इसी प्रकार जिस माह में दो सूर्य संक्रांति होती है वह क्षय मास कहलाता है।
इन दोनों ही मासों में मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते है, परंतु धर्म-कर्म के कार्य पुण्य फल प्रदायी होते हैं। सौर वर्ष 365.2422 दिन का होता है जबकि चांद्र वर्ष 354.327 दिन का होता है। इस तरह दोनों के कैलेंडर वर्ष में 10.87 दिन का फर्क आ जाता है और तीन वर्ष में यह अंतर 1 माह का हो जाता है। इस असाम्यता को दूर करने हेतु ही अधिक मास एवं क्षय मास का प्रावधान किया गया है।

क्या करें
शास्त्रों में लिखा गया है कि इस माह में व्रत, दान, पूजा, हवन, ध्यान करने से लोगों के पाप कर्म समाप्त हो जाते हैं और किए गए पुण्यों का फल कई गुणा प्राप्त होता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार मलमास के दौरान संपादित सभी शुभ कर्मो का अनंत गुना फल प्राप्त होता है। इस माह में भागवत कथा श्रवण की भी विशेष महत्ता है। पुरूष्ाोत्तममास में तीर्थ स्थलों पर स्नान का भी महžव है। यदि नित्य वहां ना जा सकें तो घर पर ही पानी के पात्र में गंगाजल और सरसों के दाने डालकर स्नान करने से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है।

पुरूषोत्तम मास कैसे हुआ
हमारे पंचांग के समस्त अंगों यथा तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण के अलावा सभी मास के कोई न कोई देवता स्वामी है, परंतु मलमास या अधिक मास का कोई स्वामी नहीं था। इस कारण इस माह में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य, शुभ एवं देव एवं पितृ कार्य वर्जित माने गए हैं।

इस स्वामी हीनता से दुखी अधिक मास विष्णुलोक में पहुंच गए और भगवान श्रीहरि से अनुरोध किया कि सभी अपने स्वामियों के आधिपत्य में हैं और उनसे प्राप्त अधिकारों के परिणामस्वरूप वे स्वतंत्र एवं निर्भय रहते हैं। एक मैं ही अभागा हूं जिसका कोई स्वामी नहीं है, अत: हे प्रभु मुझे इस पीड़ा से मुक्ति दिलाइए।

अधिक मास की आर्त प्रार्थना सुन श्री हरि ने कहा " हे मलमास मेरे अंदर जितने भी सद्गुण हैं वह मैं तुम्हें प्रदान कर रहा हूं एवं मेरा विख्यात नाम पुरूषोत्तम तुम्हें प्रदान कर रहा हूं और तुम्हारा मैं ही स्वामी हूं।" तभी से मलमास का नाम पुरूषोत्तम मास हो गया और भगवान श्री हरि की कृपा से ही इस मास में भगवान का कीर्तन, भजन, दान-पुण्य करने वाले मृत्यु के पश्चात श्री हरि धाम को प्राप्त होते हैं।
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